रूपरेखा
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कांची के पल्लवों (चौथी-नौवीं शताब्दी ई.) ने दक्षिण भारत के सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास में, विशेषकर कला और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके योगदान ने द्रविड़ मंदिर वास्तुकला की नींव रखी और क्षेत्र की साहित्यिक विरासत को समृद्ध किया।
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7-8वीं शताब्दी के कई जीवंत मंदिर एवं स्मारक हैं, जो मुख्य रूप से चट्टानों को तराश कर निर्मित किये गए है जिनमें गुफा मंदिरों की शृंखला में ‘अर्जुन की तपस्या’ (Arjuna’s Penance) या ‘गंगा का अवतरण’ (Descent of the Ganges) और तट मंदिर (Shore Temple) अधिक लोकप्रिय हैं।
यद्यपि कांचीपुरम के मंदिरों में पल्लव भित्तिचित्र उतने अच्छी तरह संरक्षित नहीं हैं, फिर भी वे दक्षिण भारतीय चित्रकला के प्रारंभिक स्वरूपों को दर्शाते हैं, तथा बाद की चोलकालीन और विजयनगर कला शैलियों को प्रभावित करते हैं।
महेंद्रवर्मन प्रथम जो एक शासक और विद्वान थे, इन्होंने मत्तविलास प्रहसन नामक एक संस्कृत व्यंग्य नाटक की रचना की, जिसमें पल्लव दरबार के जीवंत बौद्धिक जीवन को प्रदर्शित किया गया है।
पल्लवों ने संस्कृत काव्य (कविता) और गद्य के विकास में भी योगदान दिया।
पल्लवों ने संस्कृत शिलालेखों के लिए ग्रन्थ लिपि और तमिल अभिलेखों के लिए प्रारंभिक तमिल लिपि का उपयोग किया। उसने तमिल लिपि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इतिहास और संस्कृति को दर्ज करने के एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में पुरालेखशास्त्र को बढ़ावा दिया।
कांची के पल्लवों का दक्षिण भारतीय कला के विकास विशेषरूप से शैल-कर्तित वास्तुकला से लेकर द्रविड़ मंदिर डिजाइन तक — और साहित्य में बहुत योगदान रहा, वे तमिल और संस्कृत दोनों परंपराओं का समर्थन करते थे। उनके कलात्मक और साहित्यिक नवाचारों ने सांस्कृतिक नींव रखी जो चोल जैसे बाद के राजवंशों द्वारा बनाई गई, जिसने दक्षिण भारतीय विरासत को गहराई से प्रभावित किया।
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