अधोलिखितं कथनद्वयम् आश्रित्य समुचितम् उत्तरं चिनुत ।

अभिकथनम् (I) : व्रीहीन् अवहन्ति' इत्यत्र प्रयोगविधिरस्ति ।

अभिकथनम् (II) : 'दध्ना जुहोति' इत्यत्र विनियोगविधिरस्ति।

उपर्युक्तकथनस्यालोके अधोलिखितेषु विकल्पेषु समुचितमुत्तरं चिनुत-

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UGC NET Paper 2: Sanskrit 14th June 2023 Shift 2
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  1. उभये (I) & (II) कथने सत्ये स्तः।
  2. उभये (I) & (II) कथने असत्ये स्तः ।
  3. प्रथमं कथनम् (I) सत्यं किन्तु द्वितीयं कथनम् (II) असत्यम् अस्ति।
  4. प्रथमं कथनम् (I) असत्यं किन्तु द्वितीयं कथनम् (II) सत्यम् अस्ति ।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : प्रथमं कथनम् (I) असत्यं किन्तु द्वितीयं कथनम् (II) सत्यम् अस्ति ।
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UGC NET Paper 1: Held on 21st August 2024 Shift 1
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अधोलिखित दो कथनोंं का आश्रय लेके समुचित उत्तर चुनिए। 

अभिकथनम् (I) : व्रीहीन् अवहन्ति' यहाँँ प्रयोगविधि है।

अभिकथनम् (II) : 'दध्ना जुहोति' यहाँँ विनियोगविधि है

स्पष्टीकरण - 

  • नियमविधि 
    • पक्ष में अप्राप्त को प्राप्त कराने वाले विधि को नियमविधि कहते है। नियम विधि का उदाहरण है- 'व्रीहीनवहन्ति' अर्थात् व्रीहीन् का अवहनन करना चाहिए। दर्शपूर्णमासादि जैसे बड़े यज्ञों में पुरोडाश के निर्माण के लिए तण्डुलनिष्पत्ति (चावल का छिलका निकालना) एक प्रमुख कर्म होता है। क्योंकि यज्ञ में चावल (धान) की ऐसे ही आहुति नहीं दी जाती अतः तण्डुलनिष्पत्ति आवश्यक है। ऐसी अवस्था में तण्डुलनिष्पत्ति के लिए मुख्य रूप से दो साधन प्राप्त होते हैं -
      • नखविदलन,
      • अवहनन।
    • इस अवस्था में अवहनन साधन की अपेक्षा नखविदलन कर्म को प्रमुखता देते हुए यज्ञकर्ता तण्डुलनिष्पत्ति के लिए प्रवृत्त होता है किन्तु नखविदलन द्वारा तण्डुलनिष्पत्ति करना शास्त्रीय विधि से सही नहीं है इसलिए नियम विधि द्वारा अप्राप्त होने पर भी अवहनन विधि द्वारा तण्डुलनिष्पत्ति का विधान किया जाता है। यहाँ ध्यान देने योग्य है कि नखविदलन रूप एक साधन के प्राप्त होने पर भी अवहनन रूप अप्राप्त साधन को शास्त्रीय विधि से सही होने पर विधान कर देना नियम विधि का ही कार्य है
  • विनियोग विधि
    • मीमांसा दर्शन द्वारा निर्देशित चतुर्विध विधियों में द्वितीय एवं प्रमुख विधि विनियोग विधि है। यह अंग एवं अंगी के मध्य होने वाले सम्बन्ध को बताती है यह द्रव्यदेवतादि अंगों एवं होमादि अंगी के मध्य के सम्बन्ध का बोध कराती है - अप्रधानसम्बन्धबोधकोविधिर्विनियोगविधिः'। इसका उदाहरण है - दध्ना जुहोति अर्थात् दधि से होम करता है। यहाँ दध्ना में तृतीया के द्वारा दधि अंग का तथा जुहोति से अंगी (अग्निहोत्र जुहोति) के सम्बन्ध का विधान किया गया है - सा हि तृतीयया प्रतिपन्नाङ्गभावस्य दघ्नो होमसम्बन्धं विधत्ते दध्ना होमं भावयेदिति इसलिए यहाँ विनियोग विधि है। विनियोग विधि जिनकी सहायता से अंगत्व का बोध कराती है वे संख्या में छ प्रमाण हैं - 1. श्रुति 2. लिंग 3. वाक्य 4. प्रकरण 5 स्थान एवं 6 समाख्या।

 

इस से स्पष्ट होता है, की "व्रीहीन् अवहन्ति" यह प्रयोगविधि का उदाहरण नहीं है, अपितु नियमविधि का उदाहरण है। तथा "दध्ना जुहोति" यह विनियोगविधि का उदाहरण है।

अतः स्पष्ट है, की "प्रथमं कथनम् (I) असत्यं किन्तु द्वितीयं कथनम् (II) सत्यम् अस्ति।" यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।

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